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Showing posts from 2017

सरोगेसी: महिला शोषण का कुचक्र

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लिंगाधारित भेदभावपूर्ण सामाजिक तंत्र में प्रजनन सम्बन्धी तकनीक का दुरुपयोग न केवल बच्ची को कोख में ही मार डालने के लिए किया जा रहा है, अपितु उसी कोख को किराये पर देकर मोटी कमाई करने का जरिया भी बना दिया गया है. इसे सरोगेसी के नाम से जाना जाता है. सरोगेसी अर्थात् किराये की कोख. प्रजनन संबंधी इस प्रक्रिया में बच्चा चाहनेवाले असमर्थ दंपती अथवा एकल स्त्री व पुरुष द्वारा अपने बच्चे का जन्म एक समझौते के तहत किसी अन्य महिला से करवाया जाता है. जिसके बदले में उसे पैसा दिया जाता है. यानी जैविकीय पेरेंट्स और अजैविकीय मां के बीच समझौते के तहत बच्चे का जन्म . अगर कोई महिला अपने स्वास्थ्य संबंधी तमाम तरह की जोखिम उठाकर भी सरोगेट मां बनने जैसी कष्टप्रद व पीड़ादायक स्थिति को झेलते हुए चन्द पैसों के लिए किसी दूसरे के बच्चे को पैदा करने के लिए राजी हो जाती है तो उस महिला की मजबूरी की पराकाष्ठा को समझा जा सकता है. भारत में सरोगेसी उद्योग के फलने-फूलने का कारण गरीब महिलाओं की आसानी से उपलब्धता है. इससे हम महिला के दासत्व का भी अंदाज लगा सकते हैं. महिला की दमित स्थिति जो उसे सरोगेसी के धंधे में

महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने के सम्बंध में

प्रधानमंत्री भारत सरकार, विषय-महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने के सम्बंध में. महोदय, विगत दो दशकों से भारत में महिला संगठनों की ओर से संसद व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग की जा रही है. 1996 के बाद आई सभी सरकारों ने महिला आरक्षण बिल को पास करने का वादा किया लेकिन सभी सरकारें अपने वायदे से मुकर गईं. यह बिल संसद में कई बार पेश हुआ लेकिन कभी इस पर मतदान नहीं कराया गया. कई दल इस बिल का विरोध यह कहते हुए करते रहे हैं कि इस आरक्षण के भीतर अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण होना चाहिये. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) को ऐसे किसी प्रावधान से आपत्ति नहीं है. यह हमारे संगठन की ओर से बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था. (लेकिन आरक्षण का प्रतिशत 33 से कम करने या एक लोकसभा क्षेत्र से एक महिला एक पुरुष-दो प्रतिनिधियों के चुनाव जैसे प्रस्ताव का हमने हमेशा विरोध किया है क्योंकि यह आरक्षण की मूल भावना के खिलाफ है). बहरहाल आरक्षण के भीतर आरक्षण की बात को पीछे रखते हुए कई दलों के नेता खुलेआम महिला विरोधी बयानों के साथ आगे आये. चाहे 2009 में मुलायम सिंह

Comrade Shashi Yadav of AICCTU and Bihar Mid Day Meal Workers Federation speaking at the huge dharna of workers at Parliament Street

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पटना में हड़ताली एएनएम(आर) के प्रदर्शन पर लाठी-चार्ज

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◆ हड़ताली एएनएम(आर)के प्रदर्शन पर लाठी-चार्ज, कई नर्सें घायल *मांगें पूरी होने तक जारी रहेगा अनिश्चितकालीन कार्य-बहिष्कार ◆ पटना में मुख्यमंत्री के समक्ष धरना जारी ================ पटना,6 नवम्बर'17 महासंघ(गोप गुट)से सम्बद्ध बिहार राज्य एएनएम(आर) संविदा कर्मचारी संघ के आह्वान पर सेवा नियमितीकरण और समान काम के लिए समान वेतन लागू करने की मुख्य मांग की पूर्ति के लिए राज्य भर में वर्षों से संविदा -मात्र 11500 रू० मासिक मानदेय पर कार्यरत करीब 7000 एएनएम(आर) 2 नवम्बर से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार/हड़ताल और पटना में मुख्यमंत्री के समक्ष धरना चल रहा है ।  इस क्रम में 2 नवम्बर को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के ओ.एस.डी. शंकर प्रसाद और 3 नवम्बर को दो चक्र राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक के साथ संघ के प्रतिनिधियों के साथ हुई समझौता वार्ता निष्फल होने के आलोक में संघ ने 6 नवम्बर को विधान सभा के सामने प्रदर्शन करने की घोषणा किया था । आज जब लगभग 1000 एएनएम जुलुश की शक्ल में धरनास्थल से विधानसभा की ओर बढ़ीं तब गर्दनीबाग थाना चौक के पास बज्र वाहन, वाटर कैनन और भारी पु

ईरानी औरतों की कहानियां

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मेरे बालिग होने में थोड़ा वक्त है  ईरानी फिल्मकार मर्जियेह मेश्किनी ने एक दूसरे बहुत मशहूर फिल्मकार मोहसेन मखलमबाफ की स्क्रिप्ट के सहारे तीन लघु कथा फिल्मों के जरिये ईरानी समाज में औरतों की दुनिया को बहुत संजीदगी से समझने की कोशिश की है. इस कथा श्रृंखला का नाम है द डे व्हेन आइ बीकेम अ वुमन यानि वह दिन जब मैं औरत बनी . इस श्रृंखला की तीन फिल्में हैं - हवा, आहू और हूरा. तीनों क्रमशः बचपन, युवावस्था और बुढ़ापे के काल को अपनी कहानी में समेटने की कोशिश करती हैं. हम सबसे पहले हवा की कहानी से इस समाज को जानने की कोशिश करते हैं. यह फिल्म नौ साल की उम्र पर कुछ ही घंटों में पहुंचने वाली मासूम बच्ची हवा और उसके अनाथ दोस्त हसन की कहानी है. हवा की हसन के साथ खूब जमती है और फिल्म की शुरुआत ही उसके इस असरार से होती है कि उसे हसन के साथ खेलने जाना है. इस असरार में थोड़ी दूरी पर खड़ा हसन भी है. हवा की दोस्ती की मस्ती में कुछ देर के लिए व्यतिक्रम आता है जब उसकी दादी उसके नौ साल के होने पर आजादी से खेलने पर रोक लगा देती है और हवा से कहती है कि अब उसे औरतों की तरह पेश आना होगा. मासूम हवा के लिए

महिला संबंधी कानूनों को जानें

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कानून और अदालतें अक्सरहां स्वयं में बेहद महिला विरोधी हैं. पर बहुतेरे मौकों पर महिला आन्दोलन ने कानूनों में प्रगतिशील बदलाव करा पाने में सफलता हासिल की है और कानूनों पर दबाव बनाया कि वे महिला अधिकारों को प्रतिबिंबित करें. आइये खासतौर पर महिला संबंधी कानूनों के कुछ अधिक महत्वपूर्ण आयामों को जानें.  मथुरा मामला : मथुरा महाराष्ट्र की एक किशोर आदिवासी लड़की थी. वो एक लड़के से प्यार करती थी इसलिए उसके घरवालों ने लड़के के खिलाफ अपहरण का केस दाखिल कर दिया था. इसी मामले के सिलसिले में वो थाने के अन्दर थी जबकि उसका परिवार बाहर उसका इंतजार कर रहा था. दो पुलिसवालों ने थाने के भीतर उसका बलात्कार किया. पुलिसवालों को निचली अदालत ने बरी कर दिया. पर बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस रिहाई को पलट दिया और पुलिसवालों को सजा सुनाई पर 1979 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जसवंत सिंह, कैलाशम और कौशल की बेंच ने इस मामले में (तुकाराम बनाम महाराष्ट्र सरकार) बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि मथुरा ने कोई विरोध नहीं किया था - उसके शरीर पर किसी किस्म के चोट के निशान नहीं दिख रहे थे - इससे उन्होंने म

अदालतें संविधान के मूल्यों की रक्षा करें

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क्या आप भारतीय महिला हैं ? क्या आपने अपनी मर्जी से जीवन का कोई बड़ा निर्णय लिया है जिससे आपके माता-पिता असहमत हैं ? सावधान रहिए - हो सकता है कि हमारे देश की कोई अदालत आपको अपने पिता की हिरासत में दे दे और आपको पिता के घर पर कैद कर दे. ऐसा करना घोर असंवैधानिक है फिर भी भारत की कुछ माननीय अदालतें ऐसा कर रही हैं.     source: newslaundry केरल की 24 साल की महिला हदिया के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. हदिया का नाम अखिला हुआ करता था. कॉलेज में उसकी दोस्ती एक मुस्लिम सहपाठी जसीना से हुई. जसीना और उसके परिवार से अखिला की नजदीकी बढ़ी और अखिला ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम बदल कर हदिया रख लिया। हदिया के पिता ने अदालत में दो-दो बार दलीलें दीं कि उनकी बेटी का इस्लाम में जबरन धर्म परिवर्तन हुआ है. पर केरल के उच्च न्यायालय ने दोनों बार दलीलों को यह कहकर खारिज कर दिया कि हदिया बालिग है और दिमागी रूप से बिल्कुल ठीक है , और अपने निर्णय खुद ले सकती है. हदिया के पिता ने जब तीसरी बार दलील दी तो इस बार हाईकोर्ट में एक अलग बेंच था और इस बार माननीय जजों ने हदिया के पिता का साथ देते हुए हदिया से कह