उत्तर-पूर्व में नारी मुक्ति आंदोलन की भारी क्षति है अंजु बर्कटकी का जाना
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एक पतली-दुबली छरहरे बदन की साधारण सी दिखने वाली महिला को देखकर किसी को आभास न होता कि वह न सिर्फ असम के लिए , बल्कि संपूर्ण उत्तर पूर्व के लिए क्रान्तिकारी-जनवादी आंदोलन और नारी मुक्ति आंदोलन की मिसाल बनेंगी। इस महिला का नाम था अंजु बर्कटकी और दुर्भाग्यवर्श वह मस्तिष्क के कैंसर से जूझती हुई 11 दिसम्बर को हमें छोड़कर चली गईं। मृदु-भाषी , सौम्य और अत्यन्त धैर्यवान इस महिला का असम के नारी आंदोलन में योगदान भुलाया नहीं जा सकता। अंजु बर्कटकी एक आम परिवार से आती थीं और डिब्रूगढ़ के गवर्मेंट गर्ल्स हायर सेकेन्डरी स्कूल से 1974 में मैट्रिक परीक्षा पहली श्रेणी से पास करके निकलीं। उसके बाद उन्होंने स्नातक परीक्षा हनुमानबक्स सूरजमल कनोई कॉलेज डिब्रूगढ़ से उत्तीर्ण की। अंजु बचपन से अत्यन्त संवेदनशील थीं और क्योंकि उनका जन्म नगालैंड (जो उस समय असम का ही एक हिस्सा था) के कोहिमा में हुआ था , उन्होंने बचपन से देखा था कि उनकी मां की उम्र की औरतें कैसे सरकारी दमन के विरुद्ध संघर्ष कर रही थीं। 1978 में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर करने के दौर में ही अंजु का सम्पर्क कुछ अध