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Showing posts from October, 2018

छात्रा संवाद में छात्राओं ने कहा – हमें चाहिए पढ़ने-लिखने और अपने मन की आजादी

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आइसा व ऐपवा द्वारा आयोजित छात्रा संवाद में पूरे बिहार से सैंकड़ों लड़कियों का हुआ जुटान.  ऐपवा महासचिव मीना तिवारी, पटना विवि इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार, जेएनयू छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष गीता कुमारी, ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव ने छात्रा संवाद को किया संबोधित. पटना के आईएमए हाॅल में 29 अक्टूबर को आइसा व ऐपवा की ओर से छात्रा संवाद का आयोजन हुआ जिसमें बिहार के विभिन्न जिलों से तकरीबन 400 छात्राओं ने हिस्सा लिया और अपने मन की बातें कहीं. छात्रा संवाद में छात्राओं ने पढ़ने-लिखने और हर प्रकार की आजादी की मांग उठाई और कहा कि पुराने तरीके से चीजें अब नहीं चलने वाली है. छात्रा संवाद में विश्वविद्यालय की छात्राओं के अलावे बड़ी संख्या में स्कूली छात्रायें भी शामिल हुईं. छात्रा संवाद को मुख्य वक्ता के बतौर ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, पटना पटना विवि इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. भारती एस कुमार, जेएनयू छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष गीता कुमारी, ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव आदि ने संबोधित किया. इनके अलावा वीर कुंवर सिंह विवि की छात्रा श्रेया सिंह, समस्तीपु

HOW MUCH MORE MUST SURVIVORS DO? FEMINIST GROUPS AND INDIVIDUALS STAND IN SOLIDARITY WITH #METOO-IN-THE-MEDIA & FILM INDUSTRIES

Statement on #MeToo in India, signed by many organizations including AIPWA, as well as many individuals. Statement issued on 12-10-2018 It’s almost a year now since the #metoo hashtag broke through whisper networks on sexual harassment and initiated a worldwide movement. While the initial exposés were instances of assault and misogyny by men in high places in Hollywood, subsequent revelations have come in waves from women across the world in various kinds of workplaces – from academia to activism to film and media. These are narratives of women speaking truth to power about the violence and transgressions they have been subjected to by male colleagues and seniors, as well the complicit actions/inactions of institutions and individuals. The power of this moment lies not just in the individual narratives that are being shared, but in the public discourse that is being created. An open challenge to the pervasiveness of a culture that allows men to harass women, intimidate and ex

19 नवंबर को संसद के समक्ष होगा प्रदर्शन

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★सरकारी कर्मी का दर्जा,18000 मानदेय, समान काम समान वेतन सहित 22 सूत्री मांगों पर 5 अक्टूबर से जारी था 5 दिवसीय हड़ताल व दो दिवसीय महाधरना। ★ आधुनिक गुलामी की प्रतीक नियोजन नीति को समाप्ति के लिये मोदी-नीतीश को सत्ता से उखाड़ फेंकने का आह्वान। ★प्रधानमंत्री के नाम सीएम नीतीश को दिया ज्ञापन। बिहार राज़्य विद्यालय रसोइया संघ(ऐक्टू) के आह्वान पर रसोइयों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, समान काम के लिए समान वेतन देने, मानदेय 18000 करने, मध्यान्ह भोजन योजना को एनजीओ के हवाले करने पर रोक,अशोक चौधरी कमिटी की रिपोर्ट की सिफारिशों का लाभ रसोइयों को देने, पार्ट टाइम वर्कर कहने पर रोक, मानदेय का नियमित भुगतान व बारह महीने का मानदेय भुगतान समेत 23 सूत्री मांगों के लिये बिहार में पांच अक्टूबर से रसोइयों का 5 दिवसीय हड़ताल व पटना में दो दिवसीय महाधरना 19 नवंबर को संसद के समक्ष प्रदर्शन की घोषणा के साथ सम्पन्न हो गया। बिहार राज़्य विद्यालय रसोइया संघ(ऐक्टू) अध्यक्ष सरोज चौबे की अध्यक्षता में 9 अक्टूबर को दूसरे दिन शुरू हुए महाधरना में करीब दर्जन भर से अधिक जिलों से करीब दो हज़ार रसोइयों ने

मोदी-नीतीश राज में महिलाओं पर हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति का नतीजा है त्रिवेणीगंज कांड

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11 अक्टूबर को पूरे बिहार में होगा राज्यव्यापी प्रतिवाद स्कूली छात्राओं पर हिंसा के खिलाफ ऐपवा-आइसा-इंसाफ मंच द्वारा चलाया जाएगा जनजागरण अभियान. ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने 9 अक्टूबर को पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि सुपौल के त्रिवेणीगंज में कस्तूरबा बालिका विद्यालय की छात्राओं पर मुहल्लेवासियों द्वारा संगठित हमला बेहद खौफनाक है. आज ऐसा समय आ गया है कि छेड़खानी करने वाले लफंगों पर कार्रवाई व उन्हें नियंत्रित करने की बजाए मुहल्ले के लोग लड़कियों को ही बर्बरता से पीट रहे हैं. हमारे समाज में यह बिलकुल नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है. आखिर आज ऐसी नौबत क्यों आई? ऐपवा-इंसाफ मंच व आइसा की एक राज्यस्तरीय जांच टीम विगत 8 अक्टूबर को त्रिवेणीगंज गई थी. इस जांच टीम में भाकपा-माले की राज्य कमिटी की सदस्य व ऐपवा की बिहार राज्य सह सचिव सोहिला गुप्ता, इंसाफ मंच के राज्य अध्यक्ष नेयाज अहमद व आइसा नेता प्रिंस कुमार कर्ण शामिल थे. संवाददाता सम्मेलन को काॅ. मीना तिवारी, जांच टीम के सदस्यों व आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार ने संबोधित किया. मीना तिव

गंउवा बनाव क्रंतिकरिया, नजरिया खोल ए भईया

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"बेशकीमती हैं हम एक दिन हमारे दुःख  बन जाएंगे दुनिया के अचरज।" 'वुमनिया' एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म है जो विगत 30 सितंबर को बिहार म्यूजियम के ओरिएंटल हॉल में दिखाई गई। यह फ़िल्म 'नारी गुंजन' नाम की एक स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) के द्वारा संचालित किये जानेवाले बिहार के एक महिला बैड 'सरगम' को केंद कर बनाई गई है। बरसों पहले नोट्रेडम संस्था से जुड़कर केरल से बिहार आयी सुधा वर्गीज़ ने 1987 में 'नारी गुंजन' संस्था बनायी। यह संस्था बिहार के कुछ जिलों में दलित-महादलित समुदाय के बीच स्कूलों और स्वयं सहायता समूहों का संचालन करती है। 2013 में पटना से सटे दानापुर के ढिबरा गांव के दलित टोले में नारी गुंजन के स्वयं सहायता ग्रुप से जुड़ी महिलाओं ने यह सरगम बैंड बनाया था। 'वुमनिया' सरगम बैंड की महिलाओं की गाथा है। अपने साथियों व दर्जनों उत्साही दर्शकों के साथ बैठकर मैंने करोड़ों की लागत से बने बिहार म्यूजियम के एक वातानुकूलित हॉल में हो रहे इस फ़िल्म को देखा। अब जबकि इस शीत गृह का दरवाजा बंद हो चुका है, नियोन की दूधिया रोशनी की जगह वहां अंधेरा