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कॉ. कुंती देवी: एक छवि

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भाकपा-माले के दिवंगत महासचिव कामरेड विनोद मिश्र अक्सर कहा करते थे - "दिल्ली का रास्ता जहानाबाद से होकर जाता है।" पिछले साल मई माह के आखिरी हफ्ते मैं जहानाबाद में ही था। इस दौरान मैंने नोन्ही-नगवां, दमुहाँ-खगड़ी और इस्से बिगहा नाम के गांव-टोलों की यात्रा की, मगही-उर्दू के शायर वसी अहमद 'तालिब' की रचनाओं को हासिल किया और साथ ही का. कुंती देवी से एक संक्षिप्त बातचीत भी की। का. कुंती देवी अभी हो रहे जहानाबाद विधान सभा उपचुनाव में भाकपा-माले की प्रत्याशी हैं। वे इस जिले में पिछले 40-42 वर्षों से जारी भूमिहीन दलित गरीबोँ के आंदोलन का एक मजबूत स्तंभ भी हैं। कुंती बिहार में महिलाओं के आंदोलन का वह चेहरा हैं जो इस आंदोलन की कई विशिष्टताओं को उजागर करता है। जहानाबाद शहर से पश्चिम करीब 3 मील की दूरी पर है इस्से बिगहा गांव। गांव के प्रवेश मार्ग पर एक स्मारक है। एक शहीद स्तंभ जिसकी पृष्ठभूमि में ताड़ का एक खूबसूरत पेड़ है। बच्चा पेड़ हर साल लपकते हुए बड़ा होता जाता है। स्तंभ पर करीब दो दर्जन से अधिक शहीदों के नाम दर्ज हैं। बिंद व कहार अतिपिछड़ी जातियों की आबादी वाल

नफरत, दमन और हिंसा के खिलाफ समान अधिकार की दावेदारी तेज करो!

ऐपवा स्थापना दिवस 12 फरवरी 2018 नफरत, दमन और हिंसा के खिलाफ समान अधिकार की दावेदारी तेज करो! 11-12 फरवरी 1994 को ऐपवा का स्थापना सम्मेलन दिल्ली में हुआ था. इसमें कई राज्यों व क्षेत्रों में कार्यरत महिला संगठनों ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोएिसशन (ऐपवा) का गठन किया और खुद को इसमें समाहित कर दिया. साथ में, कुछ विशिष्ट पहचान रखने वाले जैसे जनजातीय व अल्पसंख्यक समुदाय की महिला संगठनों को ऐपवा के संबद्ध संगठन का प्रावधान भी बना कर रखा गया. अपने गठन के बाद के इन 24 वर्षों में ऐपवा ने अपने संघर्षों के बल पर देश स्तर पर एक अलग पहचान बनाई है. आज ऐपवा का स्थापना दिवस मनाते हुए हम देश में एक खतरनाक दौर देख रहे हैं. सदियों के संघर्ष से हासिल और महिलाओं के अधिकार और सीमित आजादी को भी आज कुचला जा रहा है. संविधान प्रदत राजनैतिक अधिकारों को नकारा जा रहा है. आज खाप पंचायतों, मनुस्मृति और भाजपा-आरएसएस के नेताओं की समझ के अनुसार महिलाओं के अधिकार-कर्तव्यों की सीमा रेखा निर्धारित की जा रही है और इसके अनुसार ‘स्त्रीधर्म’ दिखाने के लिए महिलाओं पर दमन व हिंसा की ज