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Showing posts from April, 2018

सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय इब्तिदा सफर की जो कारवां बने

ऐसी एक पढ़ने-लिखने की जगह बनाने का सपना. हममें से, जो मिलकर इसे शुरू कर सके. अलग अलग लोगों ने अलग समय, अलग स्थान पर देखा था. सिलसिलेवार तरीके से बयां करने की कोशिश की जाए तो विचार रूप में इस सपने को साझा करना और इस पर अमल करने की योजना बनाने की शुरुआत प्रणय जी (जन संस्कृति मंच) के साथ बातचीत से हुई. ऐसे पुस्तकालयों की स्थापना तब और भी जरूरी महसूस होने लगी जब हमारे समाज से पढ़ने की संस्कृति तेजी से या तो विलुप्त होने लगी या भ्रष्ट होने लगी. इस बात को तीन तरह से समझा जा सकता है. एक, ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में पुस्तकालयों का नितांत अभाव है. ऐसे इलाकों में मूलतः दो तरह का तबका रहता है. एक, जो बेहद गरीब है और पढ़ने के लिए पैसे खर्च करने की स्थिति में नहीं है, रोजी-रोटी का सवाल ही उनके लिए इतना बड़ा है कि पढ़ने के लिए पैसे खर्च कर पाना उनके लिए संभव नहीं. खासकर लड़कियों के लिए, जिनके लिए स्कूली पढ़ाई भी अधिक दिनों तक जारी नहीं रह पाती. दूसरे, वह तबका है जो अपनी लड़कियों की स्कूली पढ़ाई का कम से कम स्वांग तो रचा पाते हैं. स्वांग इसलिए कि ये लडकियां स्कूल कालेज में एनरोल तो रहती हैं, ल

बाल विवाह और दहेज प्रथा: सिर्फ सुधार अभियानों से खत्म नहीं होगी समस्या

बिहार सरकार ने बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान शुरू किया है. मुख्य मंत्री नीतीश कुमार जगह-जगह अपने मंत्रियों समेत अन्य लोगों को बाल विवाह के खिलाफ और दहेज न लेने-देने, दहेज वाली शादियों का बहिष्कार करने आदि की शपथ दिलवा रहे हैं. इस अभियान का प्रचार और विज्ञापन जिस तरह चल रहा है उससे लगता है कि सरकार इस पर भारी खर्च कर रही है. इस अभियान की समयावधि का तो पता नहीं कि यह कब तक चलेगा. तब तक, जब तक कि ये समस्याएं नीतीश कुमार की नजर में खत्म न हो जाएं. या यह अभियान अगले चुनाव तक के लिए है या भाजपा जैसी घोर पितृसत्तावादी पार्टी के साथ अपने गठबंधन को वैध ठहराने की कोशिश है. जो भी हो सामाजिक जनजागरण का अपना महत्व होता है. और बिहार में विभिन्न दौर के आंदोलनों में शामिल लोगों ने बिना सरकारी सहयोग के भी इस तरह के अभियान चलाए हैं. दशकों से बहुत सारे नौजवानों ने बिना दहेज और बिना पंडित पुरोहितों के शादियां की हैं, धर्म और जातियों के बंधन को तोड़कर शादियां की हैं और आज भी कर रहे हैं. ऐसे प्रयासों का अपना महत्व है और इन्हें प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए. लेकिन, क्या इतने भर से बाल विवाह और द

तोड़ने की संस्कृति

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हाल ही में मूर्ति तोड़ने की सत्ता सहमत प्रवृत्ति दिखलाई दी. त्रिपुरा चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व जीत ने उसे उन्मादी बना दिया और जीत के तीसरे दिन लेनिन की मूर्त्ति बुलडोजर से ढ़ा दी गई. याद रहे कि इसी उन्माद का इस्तेमाल बाबरी मस्जिद ढाने में भी किया गया था. यानि सरकारी सहमति से ही यह काम हो सकता था. इसके बाद तमिलनाडु में पेरियार, और उ.प्र. में अम्बेडकर की मूर्त्तियों पर हमला हुआ. उपरोक्त सभी अपनी-अपनी विचारधारा के प्रखर समर्थक रहे और एक समय में जनता के आदर्श भी रहे. बाद में कोलकाता में हिंदू महासभा के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति को भी कुछ लोगों ने क्षतिग्रस्त कर दिया.  अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में तालिबान ने सत्ता में आते ही सदियों से खड़ी विश्व प्रसिद्ध धरोहर बुद्ध की मूर्ति को अपनी घृणा का निशाना बनाया और आज ‘तालिबानी एक्शन’ सत्ता के उन्माद का नाम बन गया है.  पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उसपर प्रतिक्रिया भी आई. सरकारी तौर पर इसकी निंदा की गई और दोषियों को नहीं बख्शेंगे ऐसी घोषणा भी की गई. पर यह तब जबकि सात लोगों को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्त्ति तोड़ने क

शुचिता - ई.वी. रामासामी पेरियार

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(ई.वी. रामासामी पेरियार का तमिल भाषा में लिखा गया यह लेख कुदियसारु नाम की तमिल पत्रिका में 1928 में छपा था. ’वुमेन इंस्लेव्ड’ पुस्तिका में दस लेखों की श्रृंखला का यह पहला लेख था. महिला गुलामी के कुछ बिन्दुओं की शिनाख्त करते हुए पेरियार ने महिला आजादी के प्रति अपनी अवधारणा को इन लेखों में स्पष्ट किया है.) यदि हम शुचिता शब्द (तमिल-करपू) को विभाजित करें, तो यह माना गया है कि इस शब्द का मूल अर्थ ‘सीखना’ है और व्याकरणिक अर्थ में (कल+पु= करपू) यह ठीक उसी तरह शुचिता (करपू) में बदल जाता है जिस तरह पढ़ाई (पधिप्पू) ‘पढ़ना’ (पाढ़ी) में बदलता है. इसके अतिरिक्त आम मुहावरे में ‘शुचिता’ का एक अर्थ ‘वचन का पालन करना’ भी है, अर्थात किसी से किये गये वायदे के प्रति ईमानदार और सच्चे बने रहना या दो लोगों के बीच हुए करार को निभाना, उसे न तोड़ना. दूसरी ओर यदि इस शब्द को अविभाज्य मानें तो ऐसा लगता है मानो यह महिला के लिये आदर्श से जुड़ा है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर यह ‘आदर्श’, महज महिला के लिये कैसे चिन्हित हो गया. यदि हम इस ‘आदर्श’ शब्द को भी आगे खोजें तो इसके निष्कपट, निष्ठा, और निश्चित र