‘मीटू’: श्रमिक औरतों की कहानी

हालांकि ‘मीटू’ आन्दोलन हाल ही में शुरू हुआ है, लेकिन हिंदुस्तान में यह नयी बात नहीं है. यौन उत्पीड़न के खिलाफ़ लड़ाई तब शुरू हुई थी जब राजस्थान के एक गाँव की साथिन भंवरी देवी पर इसलिए बलात्कार हुआ क्योंकि वह बाल विवाह को रोकने का अपना काम कर रही थीं. श्रमिक वर्ग की हर महिला के पास एक मीटू की कहानी है. नौकरी जाने का खतरा, कम वेतन - जिस पर उनका पूरा परिवार जीता है, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं और उसपर जातिगत और वर्गीय हिंसा. इन वजहों से औरतें खुद पर हुए यौन उत्पीड़न के बारे में नहीं बता पाती. ‘मीटू’ आन्दोलन का नेतृत्व कोई एक महिला नहीं कर रही. इसमें भाग ले रही महिलाएं जिन्होंने खुदपर हमला करने वालों का खुलासा किया है, वे सब इसे अपना आन्दोलन मानती हैं. इसमें यौन उत्पीड़न के खिलाफ़ महिलाओं ने असाधारण एकता दिखाकर उसकी पोल खोली है. यह आन्दोलन उन झूठे दावों को भी ख़ारिज करती है जिनमें कहा जाता है कि औरतों का उत्पीड़न इस वजह से होता है क्योंकि वे कम कपड़े पहनती हैं, क्योंकि वे पुरुषों को रिझाती हैं, क्योंकि उनका चरित्र अच्छा नहीं होता, क्योंकि वे ही ऐसा चाहती थीं, वगैरह. यह आन्दोलन हमें दिखाता