सत्ता संरक्षित-पोषित बर्बर यौन उत्पीड़न की खुलती परतें

आज से महज पंद्रह दिन पहले जब मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन उत्पीड़न के संबंध में ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी व अन्य महिला संगठन की नेताओं ने मुख्यमंत्री के नाम एक खुली चिट्ठी लिखी और उसे अखबारों से छापने का आग्रह किया था, तब पटना स्थित एक अखबार को छोड़कर सभी अखबारों ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया था. उनके लिए यह महत्व का विषय नहीं था लेकिन अचानक 24 जुलाई के बाद जैसे सब की अंतरात्मा जाग गई हो. कुछेक पत्रकारों ने तो लानतें भेजते हुए यहां तक लिख दिया कि संस्थागत बलात्कार होता रहा और पूरा बिहार सोता रहा. नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था. इस संस्थागत यौन उत्पीड़न के खिलाफ ऐपवा का संघर्ष पहले दिन से ही जारी था.


2 जून को यह घटना मुजफ्फरपुर के अखबारों में आई थी और सिर्फ कशिश न्यूज ने इसे अपने प्राइम टाइम में जगह दी थी. घटना की जानकारी के बाद ऐपवा ने इसे अपने आंदोलन का विषय बनाया. 8 जून को ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव के नेतृत्व में एक राज्यस्तरीय जांच टीम ने बालिका गृह का दौरा किया था और बिहार सरकार से उसपर गंभीरता से कदम उठाने की मांग की थी. इस जांच टीम में शशि यादव के अलावा ऐपवा की नेत्री साधना सुमन, बबन तिवारी, शारदा देवी और प्रमिला देवी शामिल थीं. आइसा व इनौस के भी साथी जांच टीम के साथ थे. जांच टीम जब बालिका गृह देखने पहुुंची तो हतप्रभ रह गई. वह बालिका गृह न होकर ब्रजेश ठाकुर द्वारा बनाया गया विशाल साम्राज्य था. गेट तब तक बंद कर दिए गए थे. अगल-बगल के लोगों ने बताया कि इस आदमी का कुछ नहीं होने वाला है, सत्ता का दुलरुआ आदमी है. नकली अखबार निकालता है. अब यह सब तथ्य साबित होने लगे हैं. ब्रजेश ठाकुर न केवल कई एनजीओ चलाता है बल्कि विज्ञापन के लिए अखबार भी निकालता है. अखबार की 300 प्रतियां निकालता है और सर्कुलेशन 60 हजार दिखाता है. बिहार के माननीय मुख्यमंत्री के साथ उसकी तस्वीरें भी अब वायरल हो रही हैं. पता चल रहा है कि मुख्यमंत्री उसके पुत्र के बर्थडे पार्टी में शामिल होने मुजफ्फरपुर पहुंचे थे.

ऐसी स्थिति में ऐपवा की मांग आखिर सरकार क्यों सुनती? अखबारों ने भी कोई जगह न दी. लगा और अन्य मामलों की तरह इस मामले को भी दबा दिया जाएगा. लेकिन बिहार की संघर्षकारी महिलाओं ने हार नहीं मानी. तत्पश्चात ऐपवा ने पूरे बिहार में इस सवाल पर प्रचार अभियान चलाया और 22 जून को पटना में हजारों महिलाओं की गोलबंदी की. मुख्यमंत्री के समक्ष आयोजित प्रदर्शन में गया बलात्कार कांड का भी मामला उठाया गया. प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री से मिलना चाहा लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री तो आंदोलनकारी से मिलते ही नहीं. हजारों महिलाओं के प्रदर्शन पर कोई नोटिस नहीं ली गई. इसके बाद ऐपवा की ही पहल पर महिला संगठनों की संयुक्त बैठकें आरंभ हुईं. 6 जुलाई को वामपंथी महिला संगठनों के अलावा महिलाओं के सवाल पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं ने 20 जुलाई को (जिस दिन विधानसभा का सत्र आरंभ होने वाला था) पटना में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया. 13 जुलाई को संवाददाता सम्मेलन कर इसकी सूचना सार्वजनिक की गई. यहीं से मुख्यमंत्री के नाम एक खुली चिट्ठी जारी की गई जिसके कुछ अंश पर केवल हिंदुस्तान टाइम्स ने नोटिस ली थी. 20 जुलाई को पटना की सड़कें तवे की तरह गर्म थी. चिलचिलाती धूप थी. बावजूद हजारों महिलाएं काला कपड़ा पहनकर अथवा काली पट्टी बांधकर भीषण गर्मी में न्याय मांगने आईं. उन्होंने कहा कि चूंकि नीतीश कुमार को काले कपड़े से भय लगता है, वे अपनी सभाओं से काले रंग को बाहर कर दे रहे हैं इसलिए आज महिलाएं काले कपड़े में पटना पहुंची हैं. लेकिन इस प्रदर्शन पर भी न तो मुख्यमंत्री ने नोटिस लिया और न ही अखबारों ने. किसी कोने में खबर छापकर अखबार वालों ने अपना काम पूरा समझ लिया. प्रदर्शनकारियों को एक बार फिर मुख्यमंत्री से मिलाने का आश्वासन दिया गया, लेकिन वह दिन कभी न आया. इसके बाद 22 जुलाई को मुजफ्फरपुर में का. मीना तिवारी के नेतृत्व में सैकड़ों लड़कियों ने प्रदर्शन किया.

एक तरफ़ महिलाएं सड़कों पर लड़ रही थीं, तो दूसरी ओर माले विधायकों ने इसे विधानसभा के अंदर मुद्दा बनाया. इस बार विधानसभा सत्र में विपक्षी पार्टियों में इस विषय पर एकता बनी कि हर पार्टी एक खास मसले पर कार्य स्थगन प्रस्ताव लाएगी. लेकिन जब भाकपा-माले विधायकों ने मुजफ्फरपुर यौन उत्पीड़न मामले पर कार्य स्थगन की बात की तो राजद सहित सभी अन्य विपक्षी दल इसे कानून व्यवस्था का मामला बताकर खारिज करते रहे. माले विधायक अड़े रहे कि यह मामला कानून व्यवस्था का नहीं बल्कि सत्ता के संरक्षण में यौन उत्पीड़न का है. काफी ना-नुकुर के बाद विपक्षी पार्टियां कार्य स्थगन प्रस्ताव पर सहमत हुईं. 24 जुलाई को विधानसभा के अंदर इस विषय पर कार्य स्थगन प्रस्ताव लाया गया. विधानसभा के अंदर काफी हंगामा हुआ. विपक्षी पार्टियों के विधायक दल के नेताओं ने उसी दिन मुजफ्फरपुर का दौरा किया. तब कहीं जाकर यह मामला प्रकाश में आया. अगले दिन लोकसभा में भी यह चर्चा का विषय बना और केंद्र सरकार ने कहा कि यदि बिहार सरकार चाहे तो इसकी सीबीआई जांच की अनुशंसा की जाएगी. अंततः सीबीआई जांच की अनुशंसा हुई लेेकिन इसमें केवल मुजफ्फरपुर बालिका गृह का ही मामला शामिल हो सका. मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले के साथ-साथ मधुबनी व अन्य सभी बालिका व अल्पावास गृहों की पटना उच्च न्यायालय के निर्देशन में सीबीआई जांच, समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा व भाजपा कोटे से मंत्री सुरेश शर्मा की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी, चंद्रशेखर वर्मा की गिरफ्तारी व टीआईएसएस की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग पर 2 अगस्त को वाम दलों ने बिहार बंद का आह्वान किया, जिसे विपक्षी पार्टियों ने भी समर्थन दिया. जिस दिन बिहार बंद हुआ, उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया.

लगातार आंदोलन के ही कारण ही इस मसले को एक विषय बनाया जा सका वरना सरकार, प्रशासन व मीडिया ने तो इसे खत्म ही कर दिया था. मामले को दबाने की ही कोशिश की गई लेकिन बिहारी समाज के अनवरत संघर्ष के दबाव में फिलहाल सरकार को झुकना पड़ा.

टीआईएसएस की रिपोर्ट का कुछ अंश
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) के प्रोजेक्ट ‘कोशिश’ द्वारा बिहार के आश्रय गृहों की सामाजिक लेखा जोखा के रिपोर्ट का कुछ अंश पिछले दिनों अंग्रेजी अखबार में छपा है. सरकार रिपोर्ट छापने से कतरा रही है. कोशिश ने बिहार के सभी 110 कल्याण केंद्रों की जांच की है. उनमें मुजफ्फरपुर सहित 15 केन्द्रों की कार्यवाही पर गंभीर चिंता जाहिर की है. उसकी रिपोर्ट के मुताबिक सभी 15 केंद्रों में भिन्न-भिन्न रूपों व मात्र में दुराचार हुए हैं जबकि कुछ में तो यह भयानक है.

जांच टीम को मुजफ्फरपुर बालिका गृह में हिंसा के गंभीर उदाहरण मिले. पटना के अल्पावास गृह इकाई में उत्पीड़न से तंग आकर एक लड़की ने लगभग एक वर्ष पहले आत्महत्या कर ली. इनके अतिरिक्त कुछ अन्य चिंताजनक केंद्रों में है: दत्तक-ग्रहण एजेंसियां - नारी गुंजन, पटना; आर वी सेक-मधुबनी; ज्ञान भारती-कैमूर (ये तीनों खतरनाक हालत में हैं). अल्पावास गृह कैमूर ग्राम स्वराज सेवा संस्थान में लड़कियों ने यौन उत्पीड़न की बात बताई. बालक गृह मोतिहारी-निर्देश, भागलपुर-रूपम प्रगति समाज समिति, मुंगेर-पन्नाह, गया-दोर्द में भी हालत बदतर है. रिपोर्ट से यह साफ है कि आश्रय गृह घोर उत्पीड़न और कमाई का जरिया बना हुआ है और इसमें भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और माफियाओं का गठजोड़ फलता-फूलता है. यह न केवल यौन उत्पीड़न के केंद्र बना दिए गए हैं बल्कि आर्थिक भ्रष्टाचार के भी अड्डे बन बन गए हैं.

स्वाधार गृह तो केंद्र सरकार के अधीन है,
फिर वहां से महिलाएं कैसे गायब?

निसंदेह मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड बिहार को शर्मसार करने वाला है और इसके लिए नीतीश सरकार को कभी माफ नहीं किया जा सकता है. ईमानदारी तो यह थी कि नीतीश जी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था. लेकिन इस पूरे मामले में भाजपा गेम खेल रही है. इस संस्थागत व बर्बर यौन उत्पीड़न कांड की सारी जिम्मेवारी नीतीश कुमार पर डालकर तथा सीबीआई जांच में पहलकदमी दिखलाकर वह अपना चेहरा बचाना चाहती थी. लेकिन उसकी कलई भी अब खुल चुकी है. जिस मुजफ्फरपुर में बर्बर बालिका गृह उत्पीड़न कांड घटित हुआ, उसी शहर के स्वाधार गृह में भी ठीक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है, जो महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित है. स्वाधार की योजना पूरी तरह भारत सरकार के महिला व बाल विकास मंत्रालय के अधीन चलती है. वहां रहने वाली 11 महिलाएं लापता हैं. उनका क्या हुआ किसी को पता नहीं. 2015 में मोदी सरकार ने स्वाधार गृह का टेंडर ब्रजेश ठाकुर को ही दिया था जो बालिका गृह का भी संचालक था. भाजपा ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देती है लेकिन कहीं बलात्कारियों के पक्ष में तिरंगा जुलूस निकालती है और अब सरकारी योजनाओं को महिलाओं के साथ बलात्कार व यौन उत्पीड़न की योजनाओं में तब्दील कर दे रही है. नीतीश कुमार तो भाजपा के बताए रास्ते पर ही चल रहे हैं.

केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 26 जुलाई 2018 को मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड पर बयान दिया था कि कमजोर कानून के कारण ऐसी घटना हुई. उन्होंने यहां तक कहा था कि सांसद अपने इलाके का दौरा करें और बालगृहों व सुधार गृहों से मंत्रालय को अवगत कराएं, अब उनके खुद के मंत्रालय में इस तरह की घटनाएं उजागर हो रही हैं. तब उनको अपने पद पर बने रहने क्या अधिकार है?

मुजफ्फरपुर स्वाधार गृह में 20 मार्च को स्टेट सोशल वेलफेयर की जांच रिपोर्ट ने पाया था कि वहां 11 महिलाएं रहती हैं, लेकिन 9 जून को जब वह टीम दुबारा पहुंची तब मुजफ्फरपुर स्वाधार गृह में ताला लटका पाया गया और वहां कोई भी महिला नहीं थी. 9 जून को महिलाओं के गायब होने की सूचना के बाद भी 29 जुलाई तक इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुआ. ऐसे में स्वभाविक सवाल उठता है कि आखिर 2 महीने तक केंद्र सरकार कौन सी मॉनिटरिंग कर रही थी कि उसे महिलाओं के गायब होने की खबर तक नहीं मिली.

महिलाओं के ‘सम्मानजनक जीवन’ के नाम पर चलाई गई यह योजना भी महिलाओं पर दमन-अत्याचार का जरिया बन गया है. दरअसल, केंद्र व राज्य सरकार के संरक्षण में आज सभी बालिका गृहों, अल्पावास गृहों, स्वाधार गृहों आदि को बलात्कार व यौन उत्पीड़न का केंद्र स्थल बना दिया गया है. इसलिए मुजफ्फरपुर स्वाधार गृह मामले में केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी और बिहार के भाजपा कोटे के मंत्री सुरेश शर्मा को इस्तीफा देना ही चाहिए.

प्रस्तुति: कुमार परवेज

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