2019 लोकसभा चुनाव – महिला मजदूरों का घोषणा-पत्र
चुनावी युद्धोन्माद और साम्प्रदायिक ज़हर नहीं चाहिए-हमें अपने अधिकार चाहिए!
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर 7 मार्च को दोपहर 12 बजे जंतर-मंतर पर इकठ्ठा हो!!
इस साल अंतराष्ट्रीय कामगार महिला दिवस पर महिलाओं को मोदी सरकार से ये बात मजबूती से कहने की ज़रूरत है, उनके 'महिला सशक्तिकरण ' और ' बेटी बचाओ’ के वादें झूठे और खोखले हैं. हमें जुमला नहीं अपने ठोस अधिकार चाहिए। पिछले 5 वर्षों में मोदी सरकार यह सुनिश्चित करने में विफल रही कि महिलाओं को सही मजदूरी के साथ सुरक्षित और सम्मानजनक रोज़गार मिले?
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास मेहनतकश महिलाओं के संघर्ष और आंदोलनों का इतिहास है। 20 वीं सदी के शुरू में महिला मजदूरों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के लाल झंडे और क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन के साथ मिलकर 8 घंटे काम, सुरक्षित रोजगार, कार्यस्थल पर सुरक्षा और वोट देने का अधिकार की मांग के साथ जबरदस्त आंदोलन किया। 1911 में पहला अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मानाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के साथ-साथ ये महिलाएं विभिन्न देशों से एकजुट हुई।
हर साल, अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मजदूर महिलाएं अपना विरोध दर्ज करती हैं तथा युद्ध के खिलाफ शांति का सन्देश देते हुए साफ़ शब्दों में ये ऐलान करती हैं कि सत्ताधारी-वर्ग युद्ध के माध्यम से दुनिया को बांटना चाहता था। इसीलिए मजदूरों और महिलाओं को युद्ध के खिलाफ एकजुट होना और अपना विरोध दर्ज करने की जरुरत है। सन् 1917 में रूस में मजदूर महिलाएं ही थी जो 'रोटी, ज़मीन और शांति' की मांग के साथ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आंदोलन के सबसे अगली कतार में थी, रूसी क्रांति का नेतृत्व किया।
सन् 1917 में रूस में ये मेहनतकश महिलाएं प्रथम विश्व युद्ध के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कर रही थी, जिसमें उनके बेटों, भाईयों और पतियों को मरने भेजा जा रहा था। आज भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों की महिलाएं कह रही है कि "हमें कोई दूसरी पुलवामा की घटना नहीं चाहिए। न ही हमें भारत और पाकिस्तान के बीच कोई और युद्ध चाहिए। हम चाहते हैं कि हमारी सरकारें शांति के लिए काम करे, कोई राजनीतिक हल निकले और आतंकवाद का नाश हो।"
जल्द ही चुनाव घोषित होने वाले हैं और मोदी सरकार ये सोच रही है कि युद्ध संकट के बहाने मजदूरों, किसानों और छात्रों की आवाज़ को दबा देगी जोकि पूछ रहे हैं कि "मोदी सरकार ने जिस अच्छे दिन का वादा किया था, वो कहाँ है? रोजगार कहाँ है? पिछले 45 वर्षों में इतनी बेरोजगारी क्यों बड़ी है? किसान और मजदूर संकट में क्यों हैं? मोदी सरकार ने मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश का विरोध क्यों किया? कठुआ और उन्नाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने बलात्कारियों की रक्षा क्यों की?
विशेष रूप से महिला मजदूर पूछ रही हैं, सरकार ने महिला स्किम वर्कर्स और ठेका श्रमिकों को नियमित करने की मांग तथा न्यूनतम मजदूरी देने के लिए क्यों मना कर रही है? मोदी सरकार ने पिछले बजट में एक "पेंशन योजना" की घोषणा की थी - लेकिन एक असंगठित क्षेत्र के मजदूर के लिए अब 20 साल में 60 की उम्र में 3000 पेंशन का वादा कुछ भी नहीं है-प्रीमियम को छोड़कर कि उसे अब भुगतान करना शुरू करना होगा! एक महिला कैसे इस बुरी हालत में काम करे, जब उसे न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है, उसके पास एक सुरक्षित नौकरी नहीं है, एक मासिक प्रीमियम का भुगतान है?
सरकार युद्ध के बहाने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, और भी सरकार से सवाल पूछता है उसे 'देशद्रोही' घोषित कर दिया जाता है। । यही कारण है कि ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता जैसे सुधा भारद्वाज जिन्होंने महिला मजदूरों और आदिवासी महिलाओं के आंदोलनों को मजबूत करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया, को भाजपा द्वारा "राष्ट्र विरोधी" ब्रांड किया गया और जेल में डाल दिया गया। लेकिन हम अपनी आवाजों को बाहर डूबने नहीं देंगे। हमें इस बात को मजबूती से कहने की जरूरत है कि मजदूर संगठन, किसान, छात्र, महिला, आदिवासी व दलित आंदोलन तथा साम्प्रदायिक सौहार्द ही भारत के लोकतंत्र की आत्मा है।
महिला दिवस की पूर्व संध्या पर हम एक जन-सुनवाई का आयोजन कर रहे हैं। जहाँ कामगार महिलाएं अपने अधिकारों और मांगो को लेकर बात रखें। तथा हम 2019 लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में महिला मजदूरों का एक घोषणा पत्र भी जारी करेंगे।
कुछ प्रमुख मांगें जो हम जन-सुनवाई के माध्यम से उठाना चाहते हैं -
- श्रम कानूनों का उल्लंघन करना तथा समाप्त करना बंद करो, रोजगार की गारंटी करो तथा ठेकेदारी कम करो, न्यूनतम मजदूरी कानूनों को कड़ाई से लागू करो और ट्रेड यूनियनों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी करो।
- सभी श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की गारंटी करो वे जिस भी क्षेत्र में कार्यरत हो।
- सरकारी विभागों और पीएसयू में सभी मौजूदा रिक्त पदों को तुरंत भरने और रोजगार की वृद्धि के लिए ठोस उपाय किये जाये।
- प्रति माह 18000/- रुपये न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करो।
- सभी स्किम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दो और घरेलू कामगारों को मजदूर का दर्जा दो।
- घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा करने वाला कानून अधिनियमों को लागू करो।
- रोजगार और जीविका अधिनियम के अधिकार के तहत बेरोजगारी भत्ता, विधवा, वृद्धावस्था और विकलांग व्यक्तियों के लिए भत्ते का का प्रावधान करो।
- महिला कामगारों पर लगाए गए सभी लैंगिक भेदभावपूर्ण नियमों व व्यवहार को समाप्त करो(जैसे मोबाइल फ़ोन रखने पर प्रतिबंध या कारखानों और हॉस्टलों के बाहर आने-जाने पर प्रतिबंध)।
- सफाई कर्मचारियों के साथ होने जातिगत भेदभाव, सीवर में घुसकर काम करने तथा मैला ढ़ोने की प्रथा पर रोक लगाओ. सफाई कर्मचारियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करो.
- कार्यक्षेत्र पर होने वाली यौन-हिंसा की घटनाओं पर रोक लगाओ तथा प्रत्येक कार्यक्षेत्र पर यौन-हिंसा के खिलाफ सेल का गठन किया जाय.
- घरों से लेकर फेक्ट्रियों तक हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लगाओ.
- कामगार महिलाओं को मातृत्व अवकाश तथा क्रेच आदि की सुविधा की व्यवस्था करो.
ऐपवा - एक्टू
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