विद्यालय रसोइया कर्मियों की अपने वाजिब मांगों पर जारी हड़ताल
प्रति,
मुख्यमंत्री,
बिहार सरकार
द्वारा-जिला समाहर्ता
पटना
विषय-विद्यालय रसोइया कर्मियों की अपने वाजिब मांगों पर जारी हड़ताल के संदर्भ में.
महाशय,
निवेदन है कि,
1. बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों का मध्याह्न भोजन बनाने वाली रसोइयाकर्मी विगत 7 जनवरी '19 से हड़ताल पर हैंं. इस हड़ताल से पहले कई बार धरना प्रदर्शन ज्ञापन के जरिए सरकार के सामने अपनी मांगों को रख चुकी थीं लेकिन सुनवाई नहीं होने के कारण विवश होकर विगत दो सप्ताह से हड़ताल पर हैं. किंतु, अब भी सरकार ने कोई पहल नहीं की है. एक तरफ ये महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं दूसरी तरफ दो सप्ताह से लाखों बच्चों को मध्याह्न भोजन नहीं मिल रहा है. महिलाओं और बच्चों के प्रति सरकार का यह संवेदनहीन रवैया आश्चर्यजनक है!
2. 17 जनवरी '19 को सीतामढ़ी में दिए गए आपके भाषण को हमलोगों ने अखबारों में जैसा पढ़ा उसके मुताबिक आप मध्याह्न भोजन योजना को ही बंद कर देने और बच्चों के खातों में भोजन का पैसा भुगतान करने की इच्छा रखते हैं. अखबारों के मुताबिक आपने यह भी कहा कि यह केंद्र सरकार की योजना है इसलिए आप बहुत कुछ नहीं कर सकते. इस संदर्भ में हम कहना चाहते हैं कि चूंकि अब बिहार और केंद्र दोनों जगह एनडीए की ही सरकार है इसलिए राज्य का मुखिया होने के नाते रसोइयों की समस्याओं का समाधान करने और केन्द्र सरकार पर उनके हकों को प्रदान करवाने के लिए दबाव डालने, दोनों ही मामलों में आप अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते.
भोजन योजना बंद करने की इच्छा अगर रसोइयों के आंदोलन से बचने के लिए है तो आपके महिला सशक्तीकरण के दावे का क्या मतलब है?बिहार में कार्यरत लगभग ढाई लाख रसोइयों में 90% महिलाएं हैं. कृपया इन्हें बेगार खटवाने की जगह इनके श्रम का उचित मूल्य दिलवाएं. दूसरे, बच्चों के खातों में पैसा जाने भर से गरीब ग्रामीण परिवार अपने बच्चों को टिफिन देकर स्कूल भेजने में सक्षम नहीं हो जायेगा और इसकी कई वजहें हैं जिसे आप भी बखूबी समझते हैं. (बहरहाल बच्चों को स्कालरशिप,किताबें, साइकिल योजना और स्कूल यूनिफॉर्म का पैसा समय से मिल जाए तो बेहतर होगा) मध्याह्न भोजन योजना बंद होने से कई बच्चों के स्कूल पहुंचने का रास्ता जरूर बंद हो जायेगा और यह हर बच्चे के शिक्षा के अधिकार का हनन होगा.
3. सरकारें न्यूनतम मजदूरी कानून बनाती हैं. घरेलू कामगारों, अकुशल, कुशल मजदूरों के लिए मजदूरी तय करती है. लेकिन, स्वयं उसका पालन नहीं करतीं. रसोइयों को मानदेय के नाम पर साल में दस महीने 1250रु. देना कहां तक न्यायसंगत है? क्या यह महिलाओं के श्रम का शोषण नहीं है? जबकि45वें और 46वें श्रम सम्मेलनों ने भी रसोइयों को मजदूर का दर्जा देने और पेंशन आदि देने का अनुमोदन किया है.
इसलिए जीवन यापन लायक मानदेय समेत 14 सूत्री मांगों पर जारी रसोइयों के हड़ताल का समर्थन करते हुए अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) की ओर से हम आपसे आग्रह करते हैं कि इस हड़ताल में शामिल रसोइया संघों के प्रतिनिधियों से सरकार वार्ता करे और उनकी जायज मांगें पूरी कर हड़ताल को अविलंब समाप्त करवाये.
निवेदिका
मीना तिवारी (राष्ट्रीय महासचिव)
अनीता सिंहा (पटना नगर सचिव)
अनुराधा
राखी मेहता
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा)
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